तुम मिली मुझसे जब अरसे बाद ,
कुछ भी तो नहीं बदला था ,
सिवाए निगाहें और नज़रिए के ,
सब कुछ तो पहले जैसा था ।
मैंने सोचा नहीं था कभी ,
की हम ऐसे भी मिलेंगे ,
बर्बाद कर के एक दूसरे को ,
जिंदा रह सकेंगे ।
बिखरी जुल्फ आज भी ,
आंखो को तुम्हारे छिपा रही ,
अपनी उन नाजुक उंगलियों से ,
क्यों नहीं जिन्हें तुम हटा रही ।
मेरे रकीब के दिए ज़ख़्म ,
क्यों तुम छिपा रही हो ,
इश्क़ में आज भी हो मेरे ,
फिर क्यों नज़रे चुरा रही हो ।
थामने को हाथ तुम्हारा ,
मेरे हाथ आगे क्यों नहीं बढ़ रहे ,
देख कर आंखो मे लाचारी ,
हम बाहों में तुम्हें क्यों नहीं भर रहे ।
लौट कर आई है जिंदगी मेरी ,
फिर भी मौत मुझे मंजूर है ,
बार बार मेरे हिस्से ही क्यों सजा ,
आखिर मेरा क्या कसूर है ।
दफ्न कब्र में लाश मेरी ,
भला कौन ही दिल लगाएगा ,
लौट कर आया महबूब मेरा ,
फिर लौट जाएगा ।
हार गया मैं हर बाजी इश्क़ की ,
अब जीतना रास नहीं आता ,
लौट कर आने वाला ,
आखिर दूर ही क्यों जाता ।।
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