Wednesday, October 27, 2021

महफिल की उलझन

और भी हैं महफिल में ,
जिसने दिल लगाते है हम ,
पर सच कहें तो सिर्फ आपको ,
दिल में बसाते हैं हम ।

सुनते हैं सबको और पढ़ते भी हैं ,
अल्फाज़ उनके पकड़ते भी हैं ,
पर आप पर निगाहें थम जाती हैं ,
हर दफा जब कुछ नया सजाती हैं ।

कभी बात में शोर करते लब ,
तो कभी खामोशी की मुस्कुराहट ,
कभी मेरे हिस्से के चंद अल्फाज ,
तो कभी उसकी अनदेखी शरारत ।

वो किसको जिक्र में लाकर ,
ऐसे तस्वीर बनाती हो ,
मानों मुर्दा पड़े किसी शरीर में ,
जान भर जाती हो ।

जीते हैं सिर्फ आप की कहानी में ,
मरने का हमें कोई शौक नहीं ,
अल्फाज़ बने गर तो बना लेना , 
उनको सजाने पर कोई रोक नहीं ।

रही बात महफ़िल से ,
अक्सर तुम्हारे जाने की ,
अधूरे सवालों की पोटली ,
यूंही छोड़ जाने की ।

तो भला तुमसे बेहतर कौन ,
इसका जवाब देगा ,
अगली तस्वीर में जो अपने ,
सारे जुल्मों के हिसाब लेगा ।।

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