उसके हाथों पर मेहंदी नहीं ,
हमारे इश्क़ की तस्वीर सजी हैं ,
बिछड़ने के बाद आज फिरसे ,
वो अपने महबूब से मिली है ।
कुछ खता हमसे हुई थी ,
और कुछ जुल्म वो भी कर गई ,
बिना जाने किसी सच को ,
एक पल में जब अलविदा कह गई ।
खत्म लगा जैसे मेरी जिंदगी से ,
सब एक पल में हो गया ,
जब मेरे लौटने पर इश्क़ में ,
वो दिल से निकल गया ।
लगा धड़कन मेरी अब ,
मेरा साथ छोड़ने को बेताब हैं ,
इश्क़ में मुझासा वो भी ,
उसकी मौजूदगी का मोहताज़ है ।
सजी है आज फिर वो ,
अपने हाथों पर इश्क़ रचा कर ,
अपने महबूब की तस्वीर ,
दुनिया से छिपा कर ।
रंग कितना गाढ़ा चढ़ेगा ,
या वो कुछ फीका पड़ेगा ,
ये तो आने वाला वक्त बतायेगा ,
मोहब्बत में जब वो खिलने को आयेगा ।
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