ख़ुद उलझ कर जिंदगी में ,
दूसरो के मसले सुलझाती है ,
गम से भरी जिंदगी के साथ भी ,
मुस्कुराना सिखाती है ।
सपने देखे उसने कई हज़ार ,
टूटे जाते हैं जो बार बार ,
फिर भी नए ख़्वाब सजाती है ,
हार कर भी जीत जाती है ।
अपनी मंज़िल अपनी दुनिया ,
अपना ही घर बनाती है ,
फर्ज मां बाप बच्चे सबका ,
खुद ही निभाती है ।
मुश्किल लगे सफ़र में ,
हमसफर कभी नहीं भाया ,
रह गई अपनो के पास ,
बन कर उनकी छाया ।
सवाल अनगिनत और चंद जवाब ,
अक्सर खामोशी से उससे मिलते हैं ,
चुपके चुपके आकार कर दिल में ,
पलकों से जो गिरते हैं ।
बदलते वक्त और तजुर्बे से ,
अब वो और सुलझने लगी है ,
बन कर अंधेरे में दीपक ,
औरों की जिंदगी रौशनी से भरने लगी है ।।
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