Thursday, October 7, 2021

महबूब के सनम

कभी छोड़ा क्या इश्क़ में तुमने किसी को , 
किसी और से दिल लगाने के लिए ,
कहा है क्या छोड़ कर तुम्हें ,
उसका हो जाने के लिए ।

बड़ा ही दर्द भरा ये ज़ख्म होता है ,
जब मोहब्बत होकर भी ,
कोई आशिक़ अपनी मोहब्बत को ,
किसी और का होने को कह देता है ।

ना दिन के उजालों में रौशनी ,
ना रात के अंधेरे में जुगनू ,
ना ही धड़कनों का कहीं ,
शोर कोई सुनाई देता है ।

इश्क़ में बिखरने की दास्तां ,
और बिखरते रिश्तों के निशान ,
आज भी बहुत सताते हैं ,
इश्क़ में मीत से जब दूर हो जाते हैं ।

हर पल हर कदम पर ,
उसकी बात निकल ही आती है ,
इश्क़ के कहानियों की ,
बात जब भी शुरू हो जाती है ।

मेरे नींद से जुड़े जिसके ख़्वाब थे ,
मेरी खुशियों की सौगात जिसके पास थे ,
सब कुछ एक पल में देखो बिखर गया ,
इश्क़ जब उसे भी किसी और से हो गया ।

महफूज़ रहो तुम बाहों में उसके ,
जन्नत उसकी दुनिया बनाओ ,
इश्क़ में कुर्बानी मेरे हिस्से ,
तुम बस शिद्दत से इश्क़ निभाओ ।

मोहबब्त में कुर्बानी की ,
तुमने ये कैसी सजा दे डाली है ,
बना दी जिंदगी मेरी ,
लावारिस और बेचारी है ।।

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