और दिल में सवाल लाज़मी हैं ,
भला कैसे जान गए हम वो सब ,
जो छिपा अजनबियों से आज भी है ।
मानता हु मेरे गुस्ताखी की ,
कोई माफी नहीं होगी ,
लिखी हुई मेरी बात ,
अब काफी नहीं होगी ।
चलो एक फरमाइश तुमसे ,
मैं कर के ही जाता हू ,
ख्वाइशों की पोटली से ,
एक ख्वाइश ले आता हू ।
मुस्कुराहट जरा इस दफा ,
होठों पर दिल से लाना ,
हो सके तो लम्हों में ही सही ,
खुल के मुस्कुराना ।
किसी और गहने से पहले ,
मुस्कुराहट का श्रृंगार ,
उस पर क्या खुब जचेगा ,
गर वो कभी मुस्कुराहट से सजेगा ।।
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