Sunday, October 17, 2021

कसूर

कुछ पल के लिए मैं ,
अपने मंजिल से भटकने लगा था ,
छोड़ कर साथ तेरा ,
किसी और का होने लगा था ।

थामने को हाथ उसका ,
जब मैंने हाथ आगे बढ़ाया ,
बेहद ही सादगी से उसने ,
मुझे ना से मिलवाया ।

लगा तुम्हारी कोई दुआ ,
जैसे कबूल हो गई हो ,
मेरे दूर जाने की कोशिश,
फिरसे बेफिजूल रह गई हो ।

तुमसे कैसी ये दिल लगी हैं ,
जो दिल मेरा किसी और को ,
चुराने नहीं देती है ,
खींच कर अपनी ओर कर लेती है ।

खुली आंखे तो ख्याल ,
बस तुम्हारा ही मुझे आया ,
थामा कर हाथ क्यों नहीं तुमने ,
था मुझे पास बुलाया ।।

कुछ पल के लिए भी दूर जाना ,
अब तुमसे मंजूर नहीं  ,
दे देना हर सजा जुल्म की मेरे ,
गर लगे मेरा कसूर कभी ।।

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