कुछ पल के लिए मैं ,
अपने मंजिल से भटकने लगा था ,
छोड़ कर साथ तेरा ,
किसी और का होने लगा था ।
थामने को हाथ उसका ,
जब मैंने हाथ आगे बढ़ाया ,
बेहद ही सादगी से उसने ,
मुझे ना से मिलवाया ।
लगा तुम्हारी कोई दुआ ,
जैसे कबूल हो गई हो ,
मेरे दूर जाने की कोशिश,
फिरसे बेफिजूल रह गई हो ।
तुमसे कैसी ये दिल लगी हैं ,
जो दिल मेरा किसी और को ,
चुराने नहीं देती है ,
खींच कर अपनी ओर कर लेती है ।
खुली आंखे तो ख्याल ,
बस तुम्हारा ही मुझे आया ,
थामा कर हाथ क्यों नहीं तुमने ,
था मुझे पास बुलाया ।।
कुछ पल के लिए भी दूर जाना ,
अब तुमसे मंजूर नहीं ,
दे देना हर सजा जुल्म की मेरे ,
गर लगे मेरा कसूर कभी ।।
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