Friday, October 15, 2021

खामोशी से ना

मेरे आते ही जब तुम ,
कहीं चले गए ,
बड़ी खामोशी से हमें ,
ना कह गए ।

वक्त का सितम मुझ पर ,
क्या खूब वक्त ढा रहा है ,
घर आते ही उसके मेरे  ,
वो चला जा रहा है ।

चलो अब कभी उसके घर ,
ऐसे हम नही जाएंगे ,
सुकून की तलाश में ,
घर अपना ही बनाएंगे ।

आना तुम कभी घर मेरे ,
अपनी ही तस्वीर पाओगे ,
वजह मेरे मुस्कराने की ,
अपनी आखों से देख पाओगे ।

माना की मजबूर हो तुम ,
शायद इस लिए दूर हो तुम ,
बिना कुछ वक्त दिए भी ,
मुझे मंजूर हो तुम ।

भला कैसे तुम ,
मुझे ऐसे छोड़ कर जाते हो , 
सुकून की तलाश में मुझे ,
अनचाही सी खामोशी दे जाते हो ।।

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