तौफा क्या खूब दिया उसने आज ,
जब वो मेंहदी वाले हाथ लेकर आई ,
मोहब्बत के बारिश की उम्मीद में बैठी ,
आंसुओ की बारिश से भीग आई ।
सुबह का पहला ख्याल गर वो ,
तो लब पर उसका जिक्र क्यों नहीं आया ,
लगी थी मेंहदी जिसके नाम की ,
वो क्यों नहीं था कुछ कह पाया ।
बहुत से अरमां और ख्वाइश लेकर ,
पिघलते बर्फ़ में मेंहदी लगवा रही थी ,
इश्क़ के एक नए सफ़र में चलने को ,
अपने कदम वो बढ़ा रही थी ।
लगा जैसे कोई सवाल मन में उसके ,
बहुत जोर से आकर टकराया ,
जब मेंहदी लगी थी जिसके नाम से ,
वो खामोश लबों से मिलने आया ।
उसके हिस्से बस खुशियां ही तो ,
वो आज तक लेकर आई थी ,
ना जाने कौन से गुनाह की सजा ,
अपने हिस्से कर आई थी ।
इश्क़ में वो कितना बदनसीब होगा ,
जो उसके इश्क़ से अब तक दूर होगा ,
आज मजबूर वो है मोहब्बत में बेशक ,
देखना कल तू भी जरूर होगा ।।
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