एक वक्त था जब मेरे लिखे ,
हर खत को वो पूरा पढ़ती थी ,
बिन कहे भी हर बात को ,
वो खूब समझती थी ।
हमने की कोशिश पूरी ,
शिद्दत से जिसे निभाने को ,
लम्हा लम्हा जोड़ कर ,
यादों का कारवां बनाने को ।
कुछ चांद तारों के बात ने हमको ,
कुछ ऐसे उलझाया था ,
खोने की कगार पर दिल ,
खुद ही मेरा चला आया था ।
लगने लगा हर सच जैसे ,
कोई झूठा सा ख़्वाब हो ,
मिल कर जो बिछड़ गया ,
वो कोई नायाब हो ।
वक्त बदला और सब बदला ,
बदल गया उसका मिजाज़ ,
और देखे कितने बदलेगा ,
कल से वो आज ।
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