Sunday, October 24, 2021

खिलखिलाहट

सुन कर तुम को ,
अक्सर शाम होती थी ,
दिन में जिस सुकून की ,
हमें हर रोज़ दरकार होती थी ।

तुम वो सुकून बन कर ,
कितनों के हिस्से में आ रही हो ,
मुस्कराहट दे रही सबको अपनी ,
खिलखिलाहट सिर्फ मुझे दिए जा रही हो ।

वो पल कितना खूबसूरत होता होगा ,
जब तुम्हारा जिक्र भी उसे आता होगा ,
तुम्हारी खिलखिलाहट से ,
वो भी औरों की तरह मुस्कुराता होगा ।

मेरे हिस्से ना किया कोई मलाल नहीं ,
और तुमसे अब कोई सवाल नहीं ,
पर जवाब भी तुम्हें नहीं बताऊंगा ,
जब कभी पूछने तुमसे तुम्हारा हाल आऊंगा ।

ना रुक रहे अल्फाज़ खुद से ,
ना मैं उन्हें अब कभी सजा रहा ,
सुन कर तुम्हें और तुम्हारी कहानियां ,
खुद बखुद वो बनता जा रहा ।

तुम सच हो या कोई ख़्वाब हो ,
या मेरा वो छिपा कोई राज़ हो ,
हो कर भी सामने सबके तुम ,
ना जाने क्यों नही मेरे पास हो ।।

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