Friday, October 22, 2021

तेरी उलझन

हां इश्क़ सा अब कुछ ,
मुझे होने लगा है ,
पहले से भी ज़ादे ,
दिल मेरा तुझमें खोने लगा है ।

चंद रात से शुरू सफ़र ,
अब दिन के उजाले में ,
अपनी मौजदगी दिखाने लगा है ,
दिल से गुजर कर वो जाने लगा है ।

तुम्हारी खिलखिलाहट में नहीं ,
ना तुम्हारी मुस्कान में ,
छिपी हैं सारी कहानियां तुम्हारे ,
आंखो और उंगलियों के निशान में । 

लबों से दिल तक उतर कर ,
अल्फाज़ बन पन्नों पर सज कर ,
और कितने किस्से बनाओगी ,
कब सवालों की पोटली लाओगी ।

उस रात के इंतजार में ,
हर रात लंबी लगने लगी हैं ,
तु जबसे ख्वाब में मुझसे ,
चुपके चुपके मिलने लगी है ।

देखना चुरा ना ले जाए कोई ,
महफ़िल में आकर गैर ,
उलझना है मुझे इस उलझन में ,
किसी और से उलझे बगैर ।

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