Sunday, October 17, 2021

कबूलमनामा

तुमको सच मान लूं अगर ,
ख़्वाब बुरा मान जायेंगे ,
मालूम नहीं अगली दफा ,
फिर कभी वो लौट कर भी आयेंगे ।

ना मांगा हाथ मैंने तुमसे ,
ना ही कोई फरियाद लगाई ,
इस दफा कुछ जल्दी में थी तुम ,
सीधे बाहों में भर आई ।

तुम्हारी आंखो से आंसू फिरसे ,
बारिश बन कर मुझे भीगाने लगें ,
कुछ अलग ही अंदाज में तुम ,
मुझमें जब सिमट जाने लगें ।

किसी बात से तुम मुझसे ,
अपनी नज़रे चुरा रही थी ,
अनजाने में हुई खाता ,
जिसको तुम छिपा रही थी ।

तुम बोली ..

जान कर वो सच मेरा ,
मुझसे दूर तो नहीं तुम जाओगे ,
बड़ी मुश्किल से संभली हूं मैं ,
मुझे छोड़ तो नहीं आओगे ।

सब सच कहा हैं मैंने तुमसे ,
बस कुछ बताना रह गया हैं ,
कोई और भी है दिल में मेरे ,
मेरे अतीत से जो रह गया है ।

कुछ बातें कुछ मुलाकातें संग उसके ,
कुछ हद से बेहद मैं गुजर रही हु ,
तुमसे मिलते मिलते मैं उससे भी ,
कई दफा मिल रहीं हूं ।

मैं मुस्कुरा कर तुम्हें देखता रहा ,
की तभी ख़्वाब टूट गया ,
मालूम नहीं मैं रहा संग तुम्हारे ,
या फिर ये रिश्ता छूट गया ।

ख़ैर 

होंगे बहुत तुम्हारे हुस्न के दीवाने ,
हमें तुम्हारी सीरत पर मरना हैं ,
जिस्म की चाहत नहीं लिए बैठे ,
हमें तो बस रूह में रहना हैं ।।

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