अब जो थोड़ी थोड़ी बातें ,
हम दोनों करने लगे हैं ,
अपनी ही बनाए उलझन में ,
खुद ही फसने लगें हैं ।
रास्ता मेरे हर उलझन का ,
तुम कैसे निकाल पाओगी ,
गर गुजरते वक्त के साथ ,
खुद ही उलझना चाहोगी ।
एक सवाल और भी करना मुझसे ,
जब कभी अगली बार टकराना ,
रह गया बहुत कुछ अधूरा ,
तुमको जो है बताना ।
हो अगर तुम मेरे जिक्र में ,
कोई और जहन में कैसे आएगा ,
तस्वीर तुम्हारी आंखो में बसी ,
आईना कैसे किसी और को दिखाएगा ।
मिटा भी दोगी गर लिखा मेरा ,
या अपना कुछ कह कर हटाओगी ,
दिल में बसने लगे एहसासों से ,
कब तक तुम भाग पाओगी ।
चंद कदम के चाल से शुरू ,
सफ़र अब कुछ लंबा हो चला है ,
मेरे हर जज़्बात जबसे तुमने ,
अपनी लबों से पढ़ा है ।।
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