Tuesday, October 19, 2021

संगम

जिस सादगी से तुम ,
मुझसे इस कदर गुजर कर ,
इस महफ़िल से जा रही हो ,
ना जाने कितने दिलों को जला रही हो ।

कितना सुकून है साथ तुम्हारे ,
जैसे बैठा हु किसी शांत नदी किनारे ,
सब कुछ कितना निर्मल हैं ,
खूबसूरत जिसका हर एक पल है ।

शीतल सा ये संगम हमारा ,
रात में चांद की रौशनी का सहारा ,
दृढ़ निश्चय और विश्वास हैं ,
किसी खूबसूरत रिश्ते का आगाज़ है ।

एक रोज़ या हर रोज़ होंगी बातें,
ये तो आने वाला वक्त बताएगा ,
कौन कितनी शिद्दत से ,
अपने सुकून में उलझाएगा ।

कुछ पल और जुड़ गए हिस्से हमारे ,
जिसमें कुछ लम्हों की सौगात हैं ,
कुछ है खामोशी से बोले शब्द तुम्हारे ,
और चंद मेरे भी अल्फाज़ हैं ।

रात कभी वो आयेगी जब ,
कितने सवालों के हम पर वार होंगे ,
उलझने वाले उस रोज़ ,
हमें उलझाने को बेकरार होंगे ।।

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