देखा तुझे जो अरसे बाद ,
तेरे ज़ख्म नजर आए ,
मोहब्बत में था कंकाल छिपा ,
और क्या ही वो हाल-ए-दिल बताएं ।
ना अब तेरी मेरी वो बातें है ,
ना ही रातों से जुड़ी यादें है ,
बचा सिर्फ तेरा एहसास है ,
दूर हो कर भी जो मेरे पास है ।
इश्क़ का लिबास ओढ़ कर ,
ज़ख्म भला कैसे तुम छिपाती हो ,
तोड़ कर दिल अपना टुकड़ों में ,
मामूली से ज़ख्म जिन्हें बताती हो ।
चांद आज भी आसमान में ,
पलके बिछाए बैठा होगा ,
अपने उस एक तारे को ,
आकाश गंगा में ढूंढ रहा होगा ।
लौट कर आने को अब कहूंगा नहीं ,
क्योंकि तुमको मैं खो चुका हु ,
ना चाह कर भी दिल ,
किसी और को तुझ जैसे दे चुका हु ।
लिबास इश्क़ का हो मेरे ,
या हो तेरे टूटे दिल का ,
जब भी उतरने को आता है ,
ज़ख्म भला कहां छिप पाता है ।।
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