Saturday, October 9, 2021

सिगरेट सा इश्क़


तू इश्क़ मुझसे गर कर ,
अपनी सिगरेट सा करना ,
जला कर मुझे राख ,
खुद को ख़त्म करना ।

हर कश में लगेगी जन्नत आत्मा,
जहनूम जिस्म बन रहा होगा ,
लबों पर रख कर मुझे तू ,
जब सुकून से पी रहा होगा ।

तलब मेरी कुछ इस कदर ,
तुझे बर्बाद करती जायेगी ,
मोहबब्त इतनी गहरी होने लगेगी ,
छोड़ नहीं तू जिसे पायेगी ।

मंजर तो और भी देखेगी ,
मुझसे इश्क़ निभाने जब आयेगी ,
लबों पर बसने गैरों के ,
जब खुद मुझे छोड़ कर आयेगी ।

बन कर जहर मैं इश्क़ का ,
फिर उनको भी सताऊंगा ,
लबों से उतर कर ,
दिल में बस जाऊंगा ।

बस शिकायत इतनी सी ,
मैं आज दुनिया से करता हू ,
भला मैं टूटने पर ही सबके ,
अक्सर क्यों लबों पे जलता हू ।

आसान नहीं होगा इश्क़ मुझसे ,
गर कभी इरादा बन जाए ,
ना करू मैं इश्क़ किसी से ,
गर उसका महबूब मिल जाए ।।

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