हम हर रोज़ उलझाते हैं ,
मालूम नहीं पता तुम्हारा ,
फिर भी घर तक आते हैं ।
ना पता मंजिल का मुझे ,
ना मेरे पीछे कोई हुजूम है ,
सुकून हो तुम मेरे लम्हों की ,
बस इतना ही मालूम है ।
मिट रहे फासले यकीनन ,
पर कदम सिर्फ़ मैं बढ़ा रहा ,
तुम तो अब भी हो वही खड़ी ,
बस मैं पास आ रहा ।
तुमसे मिल कर बिछड़ने का ,
डर अब सताने लगा हैं ,
हर रात जबसे ख्वाबों में भी ,
तू मेरे आने लगा है ।
हर पल का इंतजार तेरा ,
किसी इजहार सा लगता है ,
दूर हो कर भी जो मेरे ,
हर वक्त पास सा लगता है ।
पहली दफा गुजर रहा मैं ,
किसी ऐसे अजनबी से हूं ,
लग रहा जैसे मैं गुजर रहा ,
अपने जिंदगी से हूं ।
तुम हो सुकून मेरी और ,
तुम ही हो मेरी हर वजह ,
क्या सच में नहीं होता क्या ,
कुछ भी बेवजह ।।
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