Friday, November 19, 2021

इश्क़ की प्याली

अगर मैं चाय होता ,
फुक फुक कर तुम ,
क्या मुझे भी होठों पर लाती ,
गले से उतारते हुए ,
अपने दिल में बसाती ।

मैं जलता हर दफा ,
तुमसे गुजरने को ,
तुम जैसी चाय से मोहब्बत ,
सिर्फ़ तुम से करने को ।

तुम जैसे शिद्दत से ,
प्याली को होठों पर लाती हो ,
क्या सच में मुझसे ज्यादा ,
तुम चाय से इश्क़ निभाती हो ।

जिसकी हर छुवन में ,
गर्माहट का एहसास होता हैं ,
बस कर लबों पर जो ,
हमेशा सुकून का आस होता हैं ।

खुशबू मेरे जाने के बाद भी ,
फिज़ा में महकती रहेगी ,
क्या किसी रोज़ तुम भी मुझसे ,
कड़क चाय सी मोहबब्त करोगी ।

चाय से दिल तो ,
हर शख्स लगता हैं ,
पर चाय सा इश्क़ ,
कहां सबको मिल पाता हैं ।

इश्क़ में हैं सब उसके ,
पर उसको सबसे इश्क़ कहां हैं ,
बस जाए जिसके भी रूह में ,
उसका तो घर बस वहां हैं ।

बाहों को समझ कर प्याली ,
क्या तुम मुझको उसमें भर पाओगी ,
उतनी ही तलब से ,
क्या मुझे भी होठों से लगाओगी ।।

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