Friday, November 12, 2021

घड़ी

रंगो में उलझी जिंदगी का श्रृंगार ,
भला बेरंग कैसे कर पायेगा ,
जब तक उसके हिस्से वक्त ,
सही वक्त नहीं लेकर आयेगा ।

देखा जब पहली दफा तुम्हें ,
तबसे ही दिल बेकरार हैं ,
मालूम नहीं इंतजार किस घड़ी का ,
दिल तो हर वक्त तैयार है ।

सुकून के पल से जिंदगी तुम्हारी ,
अब थोड़ी गुजरने लगी हैं ,
जबसे वक्त के सुई सी मोहब्बत  ,
बिना रुके तुमसे मिलने लगी है ।

मैं देख कर तुम्हें होते जुदा खुदसे ,
फिर भी देखो मुस्कुरा रहा हूं ,
वक्त के साथ बदलते एहसास पर ,
कुछ नया लिख कर सुना रहा हूं ।

तुमसे जुड़ा हर रंग और उसका एहसास ,
वक्त भला कहां मिटा पायेगा ,
देखना गुजरते वक्त के साथ ,
ये रिश्ता और भी गाढ़ा हो जायेगा ।

चढ़ेगा रंग इस दफा इश्क़ का कुछ ऐसा ,
तेरी खुशबू फिज़ा में हर ओर महकेगी ,
देखना एक रोज़ खुद इस घड़ी से ,
रुक जाओ .. तुम कह दोगी ।

उतार कर घड़ी हाथों से अपने ,
जब वक्त किसी के हिस्से करने आओगी ,
देखना वक्त के गुजरने से पहले ,
दिल में उसके बस जाओगी ।

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