मिला था मैं किसी ऐसे सच से ,
जिसको सब झूठ पता था ,
सच मेरे हिस्से का जो ,
अब तक दुनिया से छिपा था ।
बेहद उलझन के बाद ,
कुछ शोर मुझ तक आया था ,
खामोशी को छोड़ कर अपने ,
वो पहली दफा कुछ कहने आया था ।
रात के सन्नाटे और मेरा सच ,
अब वो दोनों जान रही थी ,
बड़ी उलझन भरी निगाहों से ,
खुद को आईने में देख रही थी ।
मेरे हर शब्द में कुछ सच ,
और कुछ छिपे एहसास थे ,
पहली दफा दूर होकर भी ,
लग रहे जो मेरे पास थे ।
मुझको रोका नहीं उसने ,
पर मैं खुद रुक गया ,
कहते कहते सच अपना ,
एक झूठ कह गया ।
खूबसूरत लम्हों की सौगात ,
जो खामोश रह कर दे आई ,
अपनी मौजदगी से उन लम्हों को ,
तुम खुशियों से भर आई ।
हो गया सफ़र शुरू हमारा ,
जो अब तक ना हो सका था ,
मेरे आप से तुम के उलझन में ,
जो आज तक रुका था ।।
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