मुझे हुआ क्या हैं आज कल ,
ये हर कोई सोच रहा हैं ,
फिर भी भटके मुसाफ़िर से रास्ता ,
अपनी मंजिल का पूछ रहा है ।
पर तुम भी ये सवाल पूछोगी ,
मैंने कभी ऐसा सोचा ना था ,
इस तरह कभी बीच रास्ते ,
मुझे किसी ने पहले रोका ना था ।
हाल दिल का मेरा तुमसे बेहतर ,
भला और कौन जान पायेगा ,
क्या है इजाज़त किसी और दिल को ,
जो हमसे कोई दिल लगाएगा ।
तुम्हारा असर इस दिल पर ,
देखा कितना होने लगा हैं ,
होश में होकर भी महफ़िल में ,
बस तुझमें खोने लगा हैं ।
हर अल्फाज़ से तुम सजी हो ,
और हर कहानी तुम्हारी हैं ,
जिक्र में भला आएगा कैसे ,
जब इश्क़ रूहानी हैं ।
हुआ कुछ भी नहीं मुझे ,
बस अब तुम्हें और जीने लगा हूँ ,
हर बार और शिद्दत से ,
हर रोज़ मिलने लगा हूँ ।।
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