Monday, November 15, 2021

सच

तुम मेरा सुकून ,
तुम ही मेरा करार हो ,
पहला नहीं पर आखिरी ,
मेरी ख्वाइशों का संसार हो ।

इज़हार-ए-इश्क़ तुमसे भला ,
हम कहां कभी कर पायेंगे ,
दूर हो कर भी पास तेरे ,
हर वक्त जिक्र में लाते आ जाएंगे ।

देख कर आंखो में तुम्हारे ,
अब हम खोने लगे हैं ,
हर दिन हर रात बस तेरे ,
अब हम होने लगे हैं ।

होठों पर हसीन शरारत तुम्हारी ,
जब गालों पर आकर बस जाती हैं ,
ना चाह कर भी हर दफा ,
मेरी बेकरारी बढ़ जाती है ।

जुल्फ जब कभी तुम्हारे ,
चेहरे को आकर ढकते हैं ,
फेर कर उंगलियां अपनी ,
हम जुल्फ हटा दिया करते हैं ।

थाम कर हाथ मेरा ,
क्यों रुक नहीं जाती हो ,
हर गुजरते लम्हों में आकर भी पास ,
क्यों दूर चली जाती हो ।

तुम मेरा वो सच बन गई हो ,
जिसका पता अब सबको हैं ,
क्यों नहीं पता तुम्हें ,
जो पता मेरे रब को हैं ।।

No comments: