आईं बन कर लक्ष्मी घर की ,
हम सबकी प्रेरणा बन गईं ,
अंधकार से भरे आँगन को ,
देखो रौशन कर गईं ।
मकान को घर बना कर ,
सबके भीतर का भेद मिटाया ,
सबसे उसका दुःख दर्द बाँटकर ,
साहस देकर फ़र्ज़ निभाया ।
ठोकर लगे रास्तों में कितने ,
रिश्ते भी अक्सर उलझ गए ,
पर ना हिली नज़र मंजिल से ,
उलटे पुल्टे पर सुलझ गए ।
हिम्मत ना हारीं हार ना मानी,
पग पग पर साहस वो देतीं हैं ,
अपनो की खुशियों का ही शृगार,
सदा वरण वो करती हैं ।
आज वक्त उन्हें सब लौटा रहा ,
हर त्याग परिश्रम का फल बता रहा ,
उनके हिस्से की सारी खुशियां ,
उनके झोली में ला रहा ।
आसान नहीं था सफर जिंदगी का ,
लड़ कर उसे आसान बनाया हैं ,
हर उलझन को जिसने ,
खुद ही सुलझाया है ।
फटकार भी जिनकी हर वक्त सदा ,
प्यार दुलार सी लगती है ,
कड़वी कड़वी पर सख़्त बात भी ,
माँ के प्यार सी लगती है ।
हर माँ के लिए छवि हैं आप ,
और हर पत्नी के लिए विश्वास ,
करुणा और प्रेम से पूर्ण ,
हमारी ताउम्र रहेंगी आखिरी आस ।।
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