हर हां में उसने जब मुझे ,
अपनी पहली ना से मिलवाया ,
लगा जैसे मेरा कोई ख़्वाब ,
सच होने को है आया ।
उसकी मौजूदगी मेरी जिंदगी में ,
अब कुछ हद तक बढ़ने लगी हैं ,
मुझ जैसे शरारत वो भी ,
अब मुझसे करने लगी हैं ।
उससे जुड़े मेरे अल्फाज़ ,
हर किसी को अपने से लगते हैं ,
पर ना जाने क्यों मेरा हर सच ,
उसे किसी झूठे सपने से लगते हैं ।
वो मेरा कल का हिस्सा नहीं ,
पर कल का हर जवाब होगी ,
पते का चलने पर पता ,
जब हमारी पहली मुलकात होगी ।
हर गुज़ारिश को नामंजूर करके ,
देखो वो क्या जाता रही हैं ,
पास तो थी नहीं कभी मेरे ,
पर अब मुझसे दूर जा रही है ।
उस जैसा सुकून जिंदगी में ,
जिंदगी से अब तक क्यों दूर हैं ,
उसके इज़हार से इनकार में भी ,
छिपा किसी इश्क़ का फितूर है ।।
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