बदला कुछ भी नहीं ,
आज भी तेरे श्रृंगार में ,
तरस रही मेरी निगाहें ,
आज भी तेरे दीदार में ।
फर्क बस इस दफा ,
लिबास में नजर आया ,
रंग काला हाथों पर ,
जिस्म श्वेत से ढका पाया ।
झुमके तो आज भी ,
हुबहू पहले से लग रहे थे ,
शायद इस दफा मुझे छोड़ ,
किसी और से कुछ कह रहे थे ।
हम तो आज भी उन झुमकों से ,
दिल लगाए बैठे हैं ,
उन झुमकों सा खुबसूरत ,
उसे भी मान बैठे हैं ।
बताओ ना और क्या छिपा हैं ,
जो तुम्हारी खूबसूरती बताता हैं ,
रंग श्वेत हो या हो काला ,
सब तुम पर खिल जाता है ।
आज फिर जब देखा तुम्हें ,
बस तुम्हारे झुमके नज़र आए ,
इस दफा थे वो मिलने ,
थोड़ी फुर्सत से आए ।
पता नहीं और कितने ,
तुम्हारे झुमकों पर मरते होंगे ,
हम जैसे शायद वो भी ,
इन झुमको से इश्क़ करते होंगे ।
अच्छा सुनो ..
खूबसूरत तुम भला कितनी भी हो ,
झुमके की खूबसूरती से हार जाओगी ,
देखना कभी अपनी तस्वीर मेरे निगाहों में ,
बस झुमके ही देख पाओगी ।।
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