तुम ख़्वाब में आई जब मेरे ,
माथे पर तुम्हारे बिंदी सजी थी ,
मेरे ख्वाइश को तुम ख़्वाब में ही सही ,
पूरा कर रही थी ।
तौफा मिला मुझे वक्त का तुम्हारे ,
पर बदले में मैं क्या दे गया ,
अपने दिल में छिपे कुछ राज़ ,
अनजाने में तुमसे कह गया ।
तुम सुकून हो मेरा या फिर ,
मेरा नींद उड़ाने आई हो ,
क्यों लगा कर माथे पर बिंदी ,
होठों पर मुस्कान लाई हो ।
हर सवाल का जवाब सच रहा ,
पर सवाल क्यों मुझे अधूरे लगे ,
तेरी मेरी बातों से तो हम दोनों ही ,
कुछ हद तक पूरे लगे ।
तुमको याद हर किस्सा है मेरा ,
और मुझसे जुड़ी हर बात ,
कह दे कोई ये ख़्वाब नहीं ,
सच में थी तुम मेरे साथ ।
हां ख़्वाब में ही सही ,
पर अपनी इस बदले श्रृंगार से ,
अब तुम और उलझाने लगी हो ,
जबसे माथे पर बिंदी लगाने लगी हो ।
ख़्वाब जब टूटेगा ये ,
जिंदगी मुझसे रूठ जाएगी ,
मालूम नहीं फिर लगा कर बिंदी ,
तुम मेरे ख़्वाब में कब आओगी ।।
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