तुम कहो तो तुम पर ,
एक किताब लिख दूँ ,
पूरी की पूरी अपने हिस्से की ,
कायनात लिख दूँ ।
तुम कहो तो तुम पर ,
सारी खुशियां लूटा दूँ ,
हर एक पल का कर्ज ,
बस एक पल में चुका दूँ ।
तुम कहो तो तुम पर ,
एक ग़ज़ल बना दूँ ,
अल्फाज़ के श्रृंगार से ,
तुमको सजा दूँ ।
तुम कहो तो तुम पर ,
एक नया धुन बना दूँ ,
तुम जैसे उसको भी ,
दुनिया को सुना दूँ ।
तुम कहो तो तुम पर ,
एक तस्वीर बना दूँ ,
हर रंग से भर कर जिसको ,
तेरी पहचान बता दूँ ।
तुम कहो तो तुम पर ,
अपना सब लूटा दूँ ,
होकर सिर्फ तुम्हारा ,
तुम्हें तुमसे चुरा लूँ ।
एक दफा कहो ना ,
तुम पर क्या बना दूँ ?
तुम पर चाँद सजा दूँ ,
या कायनात झुका दूँ ,
बस एक दफा कहो ,
तुम पर क्या बना दूँ ?
No comments:
Post a Comment