Monday, November 8, 2021

तुम कहो


तुम कहो तो तुम पर ,
एक किताब लिख दूँ ,
पूरी की पूरी अपने हिस्से की ,
कायनात लिख दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
सारी खुशियां लूटा दूँ ,
हर एक पल का कर्ज ,
बस एक पल में चुका दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
एक ग़ज़ल बना दूँ ,
अल्फाज़ के श्रृंगार से ,
तुमको सजा दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
एक नया धुन बना दूँ ,
तुम जैसे उसको भी ,
दुनिया को सुना दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
एक तस्वीर बना दूँ ,
हर रंग से भर कर जिसको ,
तेरी पहचान बता दूँ ।

तुम कहो तो तुम पर ,
अपना सब लूटा दूँ ,
होकर सिर्फ तुम्हारा ,
तुम्हें तुमसे चुरा लूँ ।

एक दफा कहो ना ,
तुम पर क्या बना दूँ ?

तुम पर चाँद सजा दूँ ,
या कायनात झुका दूँ ,
बस एक दफा कहो ,
तुम पर क्या बना दूँ ?

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