मेरे सच को झुठला दिया ,
तुम पर सजे शब्दों को ,
तुमने किसी और का बता दिया ।
माना की श्रृंगार में बिंदी ,
तुम माथे पर लगाती नहीं ,
खुद को आईने में भी ,
बिंदी से सजाती नहीं ।
हां ख्वाइश भर होने से ,
वो पूरा नहीं हुआ करता ,
जब तक ख्वाइश करने वाला ,
दिल में नहीं रहा करता ।
तुम्हारे झुमके तुम्हारी जुल्फ ,
और होठों की मुस्कान ,
काफी हैं तुम्हें सजाने के लिए ,
मेरे हिस्से की ख्वाइश मिटाने के लिए ।
देखे बगैर लिखा मेरा ख्याल ,
मेरी दिले ख्वाइश थी ,
देखने के बाद लिखा शब्द ,
लम्हों की फरमाइश थी ।
आप से तुम का सफ़र ,
बड़े शिद्दत से आया था ,
आज फिर एक सवाल ने ,
मुझे तुम से आप बनाया था ।
माना की है दायरा तुम्हारा ,
और तुम्हारी अपनी ही उलझन ,
पर पढ़ तो लेती वो किताब भी ,
लिखा था जिसमे मेरा मन ।
कहना तो बहुत कुछ है मुझे ,
तेरा पता मिल जाने पर ,
था नहीं मालूम पूछोगी सवाल ,
जवाब आ जाने पर ।।
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