आज पहली दफा मिल रहा था मैं ,
उनसे ख्वाबों में ,
उलझने लगा था ,
अपने ही पूछे सवालों में ।
मेरे लिए अब वो एक ख़्वाब सा,
बन कर रह गई थी ,
एक अरसा बीत गया था ,
जबसे वो खामोश रह रही थी ।
वो हुबहू तो बिलकुल वैसी थी ,
ख्यालों मे रहती जैसी थी ,
बस फर्क था उसकी आंखो के रंग में ,
और पराया कर जाने वाले ढंग में ।
आकर मेरे पास ,
वो कुछ पल सुकून से बैठी थी ,
ये बात ख्वाबों में भी ,
ख़्वाब के सच होने जैसी थी ।
पूछ बैठी एक और सवाल ,
मेरे थोड़ा और करीब आकर ,
दे दिया मैंने भी जवाब ,
गुजरते लम्हों में थोड़ा हिचकिचा कर ।
चांद तुम कब तक ऐसे ही ,
मेरा साथ निभाओगे ,
या उन अनगिनत तारों की तरह ,
गुजरते वक्त के साथ ,
मुझे भी छोड़ जाओगे ।
मैंने मुस्कुरा कर फिर से ,
उन्हें अपना हाले दिल सुनाया ,
जान कर मेरे जवाब को ,
वो भी थोड़ा मुस्कुराया ।
हर लम्हा हर एहसास ,
अब तक यूहीं जहन में ताजा है ,
बन बैठा तेरा और दीवाना ये दिल ,
जिस कदर मेरी मौजूदगी को ,
ख्वाबों में तुमने नवाजा है ।
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