मै थी कितनी अधूरी ,
जिसे पूरा करने तुम आ गए ,
मानो मांगी हो मन्नत जिसकी ,
वो दुआ बन कर आ गए ।
वो दिन भारी था बहुत गुजरने में ,
और रात बेचैन करने वाली थी ,
तुम्हारे सिर्फ एक जिक्र से ,
मैं मचलने वाली थी ।
पर थे कहां तुम ,
मेरी नजरों ने तुम्हें ,
अब तक तलाशा क्यों नहीं ,
अनगिनत बीते अधूरे लम्हों को ,
अपनी मौजूदगी से ,
तुमने नवाजा क्यों नहीं ।
था कितना अधूरापन ,
रहता बेचैन मेरा मन,
सुकून तो बहुत दूर की बात ,
गूंजती थी मुझमें सिर्फ मेरी आवाज ।
मैं आज पूरी हो गई ,
जब दरमियाँ हमारे कम थोड़ी दूरी हो गई ,
पर क्या सच में इश्क़ हो तुम मेरे ,
या अधूरेपन की कोई मजबूरी हो गई ।
सोचती हूं आज भी ,
चंद रोज में फिर कैसे मैं अधूरी हो गई ,
शायद इश्क़ में बने रहना ,
अधूरेपन की मजबूरी हो गई ।।
1 comment:
🙌🙌❤❤
Post a Comment