मैं अपने अंत की ,
शुरुआत लिख रहा हूं ,
बिखरने के बाद संभलने की ,
बात लिख रहा हूं ।
मैं लिख रहा हूं वो पैगाम ,
जिसके मायने भी बदल रहे हैं ,
हर दफा ठहर कर ,
बस कुछ दूर चल रहे हैं ।
सज रहा है किला भी मेरा ,
और सेज भी कोई सजा रहा ,
देखते है जश्न में किसके ,
जाता हूं मैं भला ।
मैं लिख रहा हूं एक और खत ,
खबर बताने के लिए ,
बिल्कुल अकेला हु खड़ा ,
हार जाने के लिए ।
गर हार जाऊं किसी गैर से ,
कोई मुझको मलाल नहीं ,
अपनो के जुल्मों पर गम कैसा ,
हर शख्स हारा है अपनो से तुझ जैसा ।
मैं लिख रहा हूं ,
वक्त के दिए हौसले को ,
गर है तुम्हारे हिस्से में कुछ,
बदल देना तुम भी ,
मेरे किसी अधूरे फैसले को ।
मैं अपने अंत की ,
शुरुआत लिख रहा हूं ,
शायद पहली और
आखिरी बार लिख रहा हूं ।।
1 comment:
Post a Comment