Thursday, July 8, 2021

अंत की शुरुआत

मैं अपने अंत की ,
शुरुआत लिख रहा हूं ,
बिखरने के बाद संभलने की ,
बात लिख रहा हूं ।

मैं लिख रहा हूं वो पैगाम ,
जिसके मायने भी बदल रहे हैं ,
हर दफा ठहर कर ,
बस कुछ दूर चल रहे हैं ।

सज रहा है किला भी मेरा ,
और सेज भी कोई सजा रहा ,
देखते है जश्न में किसके ,
जाता हूं मैं भला ।

मैं लिख रहा हूं एक और खत ,
खबर बताने के लिए ,
बिल्कुल अकेला हु खड़ा ,
हार जाने के लिए ।

गर हार जाऊं किसी गैर से ,
कोई मुझको मलाल नहीं ,
अपनो के जुल्मों पर गम कैसा ,
हर शख्स हारा है अपनो से तुझ जैसा ।

मैं लिख रहा हूं ,
वक्त के दिए हौसले को ,
गर है तुम्हारे हिस्से में कुछ,
बदल देना तुम भी ,
मेरे किसी अधूरे फैसले को ।

मैं अपने अंत की ,
शुरुआत लिख रहा हूं ,
शायद पहली और 
आखिरी बार लिख रहा हूं ।।

1 comment:

Unknown said...
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