Sunday, July 25, 2021

तराज़ू

इश्क को मापने का एक तराज़ू ,
ऐसा भी कभी होता था ,
राजा के युद्ध में जाने पर ,
इश्क़ की गवाही ,
आंसुओं को बोतलों में सजो कर ,
रानी को देना होता था ।

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मैं जा रहा लड़ने जंग में ,
तुम भी अपनी जंग में उतर जाओ ,
मेरे लौटने तक ,
शिद्दत से अश्रु बहाओ ।

ना बल से ना छल से ,
ना डर से ना द्वेष से ,
आज़ाद हो तुम अपनी दुनिया में ,
मौजूद यहां हर एक से ।

मेरी मौजूदगी हो या गैर मौजूदगी ,
सत्यता की तुम प्रतीक बनो ,
रुकना मेरे इंतजार में बेशक तुम ,
गर हो मोहब्बत तो बहों ।

महज़ इसे ना कोई रीत कहो ,
ना बेवजह मुझे मनमीत कहो ,
बंद बोतल में मौजूद अश्रूओ को ,
मोहबब्त की जीत कहो ।

तुम हो अर्धांगिनी योद्धा की ,
वीरता का प्रतीक बनो ,
ना बह सके आसूं तो मत बहाना ,
आज़ाद हो .. जाकर किसी और की जीत बनो ।

जीत लेता हूं हर युद्ध मैं ,
तुम्हारी दुआओ का असर है ,
भर गई बोतल अश्रुओ से गर ,
मोहबब्त भी शायद दुआओं सी अमर है ।

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