Saturday, July 17, 2021

नफ़रत

मैं जो निहारती थी तुम्हें दिन रात ,
अब नज़रे क्यों चुराती हूं ,
गर देख लू किन्हीं गलियों में ,
नज़रे फेर जाती हूं ।

वक्त बेवक्त तुम आ जाया करते थे ,
मेरे नजरों के सामने ,
मिलती थी चंद लम्हों की खुशियाँ ,
और खूबसूरत होते थे जिनके मायने ।

पर एक पल में ,
कैसे सब बदल जाता है ,
खुशियां देने वाला ही ,
गम की वजह बन जाता है ।

देखो आज मैं कितना बदल गई ,
गिर कर फिरसे संभल गई ,
वरना ख़त्म होना ही बचा था ,
क्योंकि मान बैठा दिल तुझे खुदा था ।

मोहबब्त के हर एहसास को ,
यहीं छोड़ जाऊंगी ,
रखना यकीन मेरा ,
लौट कर इन रास्तों पर ,
फिर कभी नहीं आउंगी ।

नज़र और नज़रिया ,
अब दोनों बदलने लगा है ,
जबसे इश्क करने वाला दिल ,
नफ़रत करने लगा है ।।

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