Sunday, July 25, 2021

तेरी खुशबू

पहली दफा जो देखा था उन्हें ,
तबसे ये सिलसिला शुरू हो गया ,
पहली ही नजर में ,
वो मेरा हो गया ।

आंखो से ना जाने क्या क्या ,
मैं हर बार कहता था ,
खामोशी से पलकों को झुका कर ,
वो ऐतबार करता था ।

उनकी खुसबु हर दफा मुझे ,
उनकी मौजूदगी बताती थी ,
मेरे पलकों की हड़बड़ी ,
उन्हें हाले दिल सुनाती थी ।

और वो भी इजहारे दिल ,
क्या खूब बयां करतीं थीं ,
खामोशी से पलके झुकाए ,
मेरे सामने खड़ी रहती थी ।

पर अब मकान बदलने वाला था ,
मेरे मुकाम के साथ ,
था नहीं मालूम आखिरी हो रही ,
खामोशी से हमारी बात ।

तेरी खुशबू आज भी फिजाओं में ,
घुल कर तेरी मौजूदगी बताती है ,
बिखरे मकान और उजड़े उम्मीद को ,
मानो जोड़ने की वजह दे जाती है ।

तुम्हारा एहसास ही काफी था ,
मेरे मुस्कुराने के लिए ,
दो पल में दो जिंदगियों का ,
सुकून दे जाने के लिए ।

पर अब पलकों की भाषा ,
खामोशी की परिभाषा ,
दिनों ही तो मालूम नहीं ,
बिन कहे उन अधुरे जज्बातों को ,
आज तक मुझे सुकून नहीं ।

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