Tuesday, July 20, 2021

नादान दिल

क्या आंखो की भाषा ,
क्या लम्हों की आशा ,
क्या जुल्फों को बिखेरना ,
अपनी लटों से खेलना ,
कुछ भी तो नहीं था उसे आता ।

ना होठों पर थी लाली ,
ना भवरे रंगो से करती वो काली ,
ना ही कोई साज़ो सामान ,
वो थी बेहद सरल और नादान ।

वक्त के साथ वक्त चलता गया ,
हर दिन के साथ कुछ बदलता गया ,
पर रुका नहीं तो वो जुनून था ,
बाकी सब बेफिजूल था ।

बदलते वक्त के साथ ,
सब बदलने लगा ,
जान कर भी  ,
जब वो अजनबी बनने लगा ।

बढ़ने लगी दूरियां और अनगिनत मजबूरियां ,
कुछ हम गिनाते कुछ वो सुनाते ,
अक्सर ऐसी ही रातें अब कटने लगी ,
और बातें घटने लगीं ।

ख़त्म हो गया सिलसिला अब ,
और ख़त्म हो गई उनकी बातें ,
ना गुजरता दिन अब हमारा ,
और ना ही कटती रातें ।

हर दफा अब वो , 
खुद को जब भी संवारती है ,
नज़रे मिला कर हमसे ,
उन्ही नज़रों से उतारती हैं ।

नादान दिल हमारा ,
आज भी उनके इस जुल्म पर मरता है ,
बदला हैं इश्क़ उन्होंने अपना ,
मेरा दिल तो आज भी ,
उन्हीं से मोहब्बत करता है ।

No comments: