मुझे नजरंदाज करो थोड़ा और ,
इतने भर से क्या होगा ,
गुनाहों की सजा तो मिलनी है ,
गर नसीब में लिखा होगा ।
मैंने मांगा बस थोड़ा सा वक्त था ,
पर वक्त होना भी तो चाहिए ,
चंद लम्हों को मान लो पूरी जिंदगी ,
किसने कहां था ये गुनाह कर आइए ।
मेरी मुस्कुराहट की वजह अगर तुम ,
तो गम की वजह कोई और कैसे ,
होता है जिक्र जब सिर्फ तुम्हारा ,
तो किसी और की फिक्र कैसे ।
आसमां में चांद के रोशनी के संग ,
तारे टिमटिमाने लगे थे ,
हर दफा जुगनूओ सा बन कर ,
जब तुम आने लगे थे ।
पर एक रोज़ ,
रोज़ सा कुछ नहीं था ,
और था भी तो सब अधूरा ,
बेवजह कौन ही करता जिन्हें पूरा ।
तेरी गैर मौजूदगी अब,
हर मौजूदगी में बढ़ने लगी थी ,
अपनी नजरंदाजी से तुम मुझे ,
गैर कहने लगी थी ।
ख़्वाब था जो अब तक हम देख रहे ,
नींद के साथ वो भी टूट गया ,
माफ करना मुझे ,
गर दिल आप का रूठ गया ।
वैसे भी किसी को नजरंदाज करना ,
आप से बेहतर किसे ही आता होगा ,
हो सके तो दे जाना जवाब ,
आख़िर क्यों ,
सुकून देने वाला बेचैन कराता होगा ।।
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