Tuesday, July 27, 2021

जश्न

थक हार कर बैठने लगा था मैं ,
और जीत नामुमकिन हो चली थी ,
थे मौजूद आप सब ,
और कुछ ऐसी ही महफिल सजी थी ।

उस रोज़ से बदला बहुत कुछ ,
बस आप आज भी वैसे ही हैं ,
हो रहे सपने सच मेरे अब ,
मानो वो भी बन रहे आप जैसे ही हैं ।

जश्न मेरे इस जीत की ,
मेरे अपने मना रहें ,
अब नहीं अकेला मैं ,
ये सब बता रहे ।

वक्त का शुक्रिया , 
आप का शुक्रिया ,
हौसला मेरा बढ़ाने को ,
हार कर भी जीत सकते हैं ,
हर दफा ये बताने को ।

शुक्रिया उनका भी ,
जो बीच रास्ते छोड़ गए ,
बेवजह ही मुंह मोड़ गए ।

आज के जश्न की वजह आप भी ,
क्योंकि ना होते हम अधूरे ,
और ना जीत से होते हम पूरे ।।

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