Wednesday, July 7, 2021

इश्क़ - एक सफरनामा

 मेरे सफरनामे का ,

एक और इश्क़ हो तुम ,

गर कहूं आखिरी तुम्हें ,

तो पहली नहीं हो तुम ।


हर बार ठहर कर जब ,

शिद्दत से इश्क़ में खोने लगते है ,

बन कर आता है कोई बुरा सपना ,

जिसके बाद फिरसे दूर होने लगते है ।


चांद तारों से करते बातें ,

बीती जो अनगिनत रातें ,

और पहाड़ों से ऊंचे ख्वाब ,

सब अच्छा था ... पर क्या सच्चा था?


हां तुमसे कही हर बात सच्ची थी , 

लौटी चहरे पर मुस्कान सच्ची थी ,

थे मेरे सच्चे आंसू भी ,

और था सच्चा तेरे इश्क का जादू भी ।


खाई कसमें जो तेरी थी ,

माना मोहब्बत को ही था खुदा ,

शायद थी कसमें ही झूठी ,

या था किस्मत में होना जुदा । 


यकीनन पेशेवर दिल तोड़ आशिक़ ,

हो चला है दिल मेरा ,

वरना कौन छोड़ कर यू जाता है ,

जिंदा मोहब्बत को कब्र में भला ।


रही बात तेरे हिस्से के कहानी की ,

वक्त आने पर वो भी बताएंगे ,

जब आखिरी होगी मोहबब्त मेरी ,

दुनिया को सुनाएंगे ।

1 comment:

Unknown said...
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