मेरे सफरनामे का ,
एक और इश्क़ हो तुम ,
गर कहूं आखिरी तुम्हें ,
तो पहली नहीं हो तुम ।
हर बार ठहर कर जब ,
शिद्दत से इश्क़ में खोने लगते है ,
बन कर आता है कोई बुरा सपना ,
जिसके बाद फिरसे दूर होने लगते है ।
चांद तारों से करते बातें ,
बीती जो अनगिनत रातें ,
और पहाड़ों से ऊंचे ख्वाब ,
सब अच्छा था ... पर क्या सच्चा था?
हां तुमसे कही हर बात सच्ची थी ,
लौटी चहरे पर मुस्कान सच्ची थी ,
थे मेरे सच्चे आंसू भी ,
और था सच्चा तेरे इश्क का जादू भी ।
खाई कसमें जो तेरी थी ,
माना मोहब्बत को ही था खुदा ,
शायद थी कसमें ही झूठी ,
या था किस्मत में होना जुदा ।
यकीनन पेशेवर दिल तोड़ आशिक़ ,
हो चला है दिल मेरा ,
वरना कौन छोड़ कर यू जाता है ,
जिंदा मोहब्बत को कब्र में भला ।
रही बात तेरे हिस्से के कहानी की ,
वक्त आने पर वो भी बताएंगे ,
जब आखिरी होगी मोहबब्त मेरी ,
दुनिया को सुनाएंगे ।
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