दिल कह रहा अब तो कह दो ,
उनसे जो कहनी है बात ,
अधुरा रह नहीं गया दर्मियां कुछ ,
सिवाए वो चंद अल्फाज़ ।
देखा आज सुकून से ,
तुम्हें पहली बार ,
बिखरी जुल्फे और कातिल निगाहें ,
गया मैं सब हार ।
होठों पर बसी मुस्कराहट उनके ,
मानों मेरा हाले दिल बता रही हों ,
मेरे धडकनों के शोर को ,
जो जोर से बढ़ा रही हों ।
पलके जितनी दफा झुका कर ,
वो निगाहों को छिपा रही थी ,
हाले दिल निगाहों से ,
मुझे बता रही थीं ।
रुक रुक कर वो अल्फाज़ ,
जो दिल से जुबां पर आ रहे थे ,
बहुत सोच सोच कर ,
उन अल्फाजों को वो सजा रहे थे ।
कुछ था गर गैरमौजूद ,
उस लम्हें में हमारे ,
तो वो उनके माथे की बिंदिया थी ,
और मेरे आंखो की निंदिया थी ।
कितना मुश्किल है ,
इस एहसास को बता पाना ,
तेरा हो कर भी ,
"पराया" हो जाना ।
काश मैं सौदागर होता शब्दों का ,
कुछ चुरा कर शब्द ले आता ,
पिरो कर माला जिसकी ,
तुझसे वो चंद अल्फाज़ कह जाता ।।
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