Wednesday, July 7, 2021

जिंदा लाश

हम रात में जागते हैं ,

काली रातों को रोशन करने ले लिए ,

अनगिनत मौजूद महफ़िल में ,

भूखों का पेट भरने के लिए ।


कभी गर भर पेट नहीं मिलता खाना ,

वो बहुत सताते हैं ,

मेरे बाद किसी और चौखट पर ,

जा कर भूख मिटाते है ।


किसी का हाल होता बुरा ,

कोई हमें बुरा हाल छोड़ जाते हैं ,

सोचती हूं पूंछू दुनिया वालों से ,

क्यों अपनो का पेट नहीं भर पाते हैं ।


हां मिलता है ना दाम मुझे ,

हर भूखे को खिलाने का ,

रक्त के आखिरी कतरे तक को ,

मुस्कुरा के बहाने का ।


पर आज कल ,

रौशनी में भी अंधेरा है ,

शायद सूरज को बादलों ने घेरा है ।


वरना भूखा जो रात को ,

अक्सर जगाता था ,

दिन में मुझे कभी ,

नहीं वो सताता था ।


अब अक्सर बेवक्त चला आता है ,

फर्क भी नहीं पड़ता उसे ,

गर खाने में वो ,

कोई जिंदा लाश खाता है ।


आखिर इतनी भूख ,

कहां से वो लाता है ,

क्या उसके हिस्से का भोजन ,

कोई और खाता है ,

जो आकर यहां वो भूख मिटाता है ।


क्या उसके हिस्से का भोजन ,

कोई और खाता है ll

1 comment:

Anonymous said...

Totally impressed. Specially the line with zinda lash. Selection of your words are so simple yet appreciable. It is really not easy to understand what your mind might have gone through to bring out such wonderful writings.