बस कर ज़ालिम ,
अब मुझसे और नहीं सहा जायेगा ,
इश्क़ की कोशिशों से भी ,
नफ़रत हो जायेगा ।
तुम्हें मान कर दिल का सुकून ,
खुद में बसा बैठे थे ,
एकतरफा ही सही ,
मोहब्बत के कुछ पल बिता बैठे थे ।
पर देख कर भी आज कल ,
तुम अनदेखा कर जाती हो ,
क्या हर इश्क़ करने वाले को ,
ऐसे ही सताती हो ।
दिन के इंतजार में ,
मेरी रातें लंबी हो चली ,
और गुजरते पल के साथ,
खलती रही तेरी कमी ।
ना तुम आए ,
और ना तुम्हारा कोई पैगाम आया ,
ना ही तुम्हारे किसी जिक्र में ,
मेरा नाम आया ।
तेरे जिक्र से भागू गर मैं ,
तो और कितना भगाओगी ,
क्या मेरे हिस्से के बचे लम्हों को ,
अधूरा छोड़ जाओगी ।
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