इजाज़त है क्या मुझे ,
तुमसे इश्क़ करने की ,
हर रोज तुम पर ,
इतने ही शिद्दत से मरने की ।
जिक्र में हर पल हो तुम मेरे ,
और हमें क्या चाहिए ,
गर हो इजाजत इश्क की ,
तो बताइए ।
मैं कैसे कहूं शब्दों को सजा कर ,
खुद को सौदागर बना कर ,
इश्क़ में हो कर भी ,
इश्क़ को झूठला कर ।
हर पल हर दफा ,
जब कभी जिक्र में ,
तुम मेरे आ जाती हो ,
इश्क़ के मायने बदल जाती हो ।
आज भी और कल भी ,
मैं कुछ ऐसा ही रहूंगा ,
गर मिल गई इजाज़त ,
तो मोहबब्त करूंगा ।
वैसे भी वक्त है बहुत ,
अभी तेरा हो जाने में ,
बेवजह ही सही ,
मोहब्बत को निभाने में ।
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