Tuesday, July 27, 2021

जिल्लत

मत कर इतना भी गुनाह ,
जिसकी कोई माफी ना हो ,
क्या कम सहा है जुल्म उसने ,
जिंदगी भर भी मिले गम तुझे ,
तो काफी ना हो ।

देख जरा अपने कर्मों की सजा ,
आ रहा आज कितना मज़ा ,
तू हर रोज़ उसको रुलाता था ,
नोच कर जिस्म भी अक्सर खाता था ।

तेरे नशे को उसने होठों से लगाया ,
तेरे हर धब्बे को दुनिया से छिपाया ,
हाय रब्बा क्या क्या नहीं  ,
तूने था उससे करवाया ।

उसने सब कुछ छोड़ कर ,
बस तुझे संभाला था ,
इतने जुल्म और जिल्लत के बाद भी ,
बना रहा वो तेरा सहारा था ।

पर अब और सह पाना मुमकिन नहीं ,
फर्क नहीं पड़ता गर तू उसकी मंजिल नहीं ,
बस जो चाहिए उसे वो सुकून है ,
बगैर जिसके ये जिंदगी बेफिजूल है ।

देख जरा अब कितनी ,
वो कठोर हो गई ,
आई तेरे मौत की खबर ,
और वो भाव विभोर हो गई ।

वक्त ने वक्त के साथ ,
तुझे वही सिर्फ लौटाया ,
उस वक्त जो कुछ भी ,
उसके हिस्से तू था छोड़ आया ।

हर दर्द को भुला कर ,
अब वो मुस्कुराती है ,
जिंदगी के माईने को ,
जी कर दिखाती है ।

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