Sunday, July 4, 2021

इश्क़ तुमसे

कल की ही तो बात है ,
लगता जैसे वो साथ है ,
सब कुछ होता अधूरा है ,
जबतक करता नहीं वो पूरा है ।

पहली दफा नजर नहीं ,
हमारा नजरिया मिला था ,
इश्क़ में बंधने को ,
जब दिल दौड़ पड़ा था ।

हर रोज कुछ नया सा ,
मुझको लगता था ,
जितनी दफा वो ,
इजहारे मोहब्बत करता था ।

मैं उसमे इतने खो गई ,
मालूम भी नहीं चला ,
ताउम्र कब उसकी हो गई ।

मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र ,
और माथे पर बिंदी ,
अब सब गवाही देते थे ,
हम कितना उनमें हर वक्त खोते थे ।

पर वक्त के साथ ,
वो भी बदल गए ,
होते साथ हमारे ,
पर जिक्र में किसी और के हो गए ।

हर याद हर साथ हर बात ,
अब जुल्म का रूप लेने वाले थे ,
जिस पर वो हमें गैर ,
और गैर को अपना कहने वाले थे ।

मोहब्बत जो जन्नत सी थी मेरी ,
अब जहन्नुम लगने लगी ,
ताउम्र जिंदा रहने की ख्वाइश ,
मौत से मिलने लगी ।

मैं हार गई खो कर उसे ,
या खुद से जीतने वाली थी ,
था नहीं मालूम जिंदगी को ,
मैं कितनी मतवाली थी ।

आजाद हु आज खुद के जंजीरों से ,
नहीं घिरी मैं किसी भी अंधेरे से ,
इश्क तुमसे और भी गहरा हो चला है ,
आईने में जिस रोज तू आ मिला है ।

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