Friday, September 10, 2021

महफूज़

इश्क़ क्या ही बताएगा , 
जब निभाने उसे कोई आयेगा , 
शोर जो दबा रखा है अंदर ,
वो भी खामोश हो जाएगा ।

मिलने पर इश्क़ के , 
इश्क़ को भी , 
इश्क़ से , इश्क़ हो जाएगा ।

ना होगा कुछ अधूरा ,
ना पूरा करने की जंग होगी ,
मोहब्बत की कहानी में ,
इस दफा वो भी संग होगी ।

मेरा फितूर उस पर चढ़ा था ,
या मुझ पर उसका फितूर ,
अब चढ़ने लगा है ,
दिल ये सवाल बार बार करने लगा है ।

बारिश ने जबसे चुपके से आकर ,
हम दोनों को भिगोया है ,
इश्क़ के इस सफरनामे में ,
मानों हम दोनों ने कुछ खोया है ।

हम दोनों भी तो अब ,
कल्पनाओं में खो चुके हैं ,
एक दूजे की कहानियों का ,
हिस्सा हो चुके है ।

छोड़ कर तुम मत जाना रूह से ,
गर जिस्म से चली भी जाओ ,
एक और दफा मोहब्बत को ,
बगैर जिस्म के जी कर दिखाओ ।।

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