इश्क़ क्या ही बताएगा ,
जब निभाने उसे कोई आयेगा ,
शोर जो दबा रखा है अंदर ,
वो भी खामोश हो जाएगा ।
मिलने पर इश्क़ के ,
इश्क़ को भी ,
इश्क़ से , इश्क़ हो जाएगा ।
ना होगा कुछ अधूरा ,
ना पूरा करने की जंग होगी ,
मोहब्बत की कहानी में ,
इस दफा वो भी संग होगी ।
मेरा फितूर उस पर चढ़ा था ,
या मुझ पर उसका फितूर ,
अब चढ़ने लगा है ,
दिल ये सवाल बार बार करने लगा है ।
बारिश ने जबसे चुपके से आकर ,
हम दोनों को भिगोया है ,
इश्क़ के इस सफरनामे में ,
मानों हम दोनों ने कुछ खोया है ।
हम दोनों भी तो अब ,
कल्पनाओं में खो चुके हैं ,
एक दूजे की कहानियों का ,
हिस्सा हो चुके है ।
छोड़ कर तुम मत जाना रूह से ,
गर जिस्म से चली भी जाओ ,
एक और दफा मोहब्बत को ,
बगैर जिस्म के जी कर दिखाओ ।।
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