Saturday, September 4, 2021

खुशियों की पोटली

आज अरसे बाद उसने ,
खुद को फिरसे सजाया था ,
माथे पर बिंदिया , कानों में झुमके ,
और बालों में झूमर लगाया था ।

पर इस दफा सजने में उनके ,
बात कुछ अलग थी ,
हर श्रृंगार से जुड़ी कहानियां ,
जिसमें अनगिनत थी ।

तुम्हारे जिक्र भर से देखो ,
कितना सब बदल सा जाता है ,
कश्मकश से भरे इस रिश्ते को ,
जो और उलझाता है ।

कभी गम का साया आता ,
तो कभी खुशियों की बारिश ,
कभी हम करते मिन्नते ,
तो कभी तुम करते सिफ़ारिश ।

ये सिलसिला शुरू जो हुआ ,
ख़त्म इसको भी तो होना है ,
पर इस दफा हर लम्हें को ,
खुशियों से सजोना है ।

गर रह गया कुछ भी अधूरा ,
तो रहने देना ,
लबों पर जो आ जाए कोई बात ,
तो कहने देना ।

क्योंकि इस रिश्ते में ,
सब कुछ अब तक पाक है ,
जज्बातों के समुंदर में ,
तेरी लहरों का साथ है ।

तुम्हारी खुशियों की पोटली में ,
अब फिरसे कुछ लम्हें आने को हैं ,
हर एक दफा आईने में देख कर ,
जो चांद का हो जाने को है ।

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