मैं उस फूल सा खुशनसीब ,
क्यों नहीं बन सकता हु ,
मिलकर मौत से गले ,
किसी और को जिंदगी दे सकता हु ।
लावारिस कही सड़को पर ,
टूट कर मैं पड़ा था ,
उसने अपनी मोहबब्त की खातिर ,
बस मुझे ही चुना था ।
अपने साजन के लिए ,
मुझे वो कानों पर सजा रही थी ,
मिलते ही मोहबब्त से ,
फिरसे सड़क पर ला रही थी ।
मुरझा कर मैं अब फिर ,
उसी सड़क पर टूट कर पड़ा था ,
किसी और महबूब के मोहबब्त की ,
बेवजह वजह बन रहा था ।
कही से छूट कर मैं ,
कही टूट कर पड़ा था ,
मेरी मोहब्बत का तमाशा ,
हर राहगीर देख रहा था ।
मुझे टूटना पसंद नहीं ,
पर किस्मत कौन बदल पाता है ,
कांटों वाले फूल को ,
सबसे ज्यादा तोड़ा जाता है ।।
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