Monday, September 27, 2021

फ़रियाद

फ़रियाद की है आज मैंने ,
खुदा से पहली दफा ,
बादलों से कह दो ,
थोड़ा बरस दे जरा ।

पहले भी आती थी बरसात ,
पहली दफा उसे वो बुला रहा है ,
बन कर बारिश भिगोने का ,
मन वो भी बना रहा है ।

दूरियां आज दरमियां हमारे ,
क्यों मीलों सी लग रही , 
उतर रही खुमारी तेरी और 
मेरी खुमारी अब चढ़ रही ।

सब कुछ पूरा हो कर भी ,
आज अधूरा लग रहा हैं ,
फरियाद खुदा से वो ,
तेरे बरसने की कर रहा है ।

रात के अंधेरे के किस्से नहीं ,
दिन के उजाले सी बन कर आना ,
भूल कर सब अंधेरों को ,
बस रौशनी से भर जाना । 

ये कैसा सा खुमार मुझपर अब ,
तेरा चढ़ने लगा है ,
हर एक पल खामोशी से जो ,
बेकरार करने लगा है ।

चंद फासले अब मिटने को हैं ,
या बिलकुल अब मिट चुके हैं ,
अल्फाज़ की पहेली अब ,
हम दोनों ही अब बन चुके हैं ।।

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