खुदा से पहली दफा ,
बादलों से कह दो ,
थोड़ा बरस दे जरा ।
पहले भी आती थी बरसात ,
पहली दफा उसे वो बुला रहा है ,
बन कर बारिश भिगोने का ,
मन वो भी बना रहा है ।
दूरियां आज दरमियां हमारे ,
क्यों मीलों सी लग रही ,
उतर रही खुमारी तेरी और
मेरी खुमारी अब चढ़ रही ।
सब कुछ पूरा हो कर भी ,
आज अधूरा लग रहा हैं ,
फरियाद खुदा से वो ,
तेरे बरसने की कर रहा है ।
रात के अंधेरे के किस्से नहीं ,
दिन के उजाले सी बन कर आना ,
भूल कर सब अंधेरों को ,
बस रौशनी से भर जाना ।
ये कैसा सा खुमार मुझपर अब ,
तेरा चढ़ने लगा है ,
हर एक पल खामोशी से जो ,
बेकरार करने लगा है ।
चंद फासले अब मिटने को हैं ,
या बिलकुल अब मिट चुके हैं ,
अल्फाज़ की पहेली अब ,
हम दोनों ही अब बन चुके हैं ।।
No comments:
Post a Comment