Saturday, September 18, 2021

दुपट्टा

कोई एक रंग मालूम नहीं ,
हर रंग में कहर ढाती हो ,
कभी सर तो कभी कांधे पर ,
जब भी इसे सजाती हो ।

किसी और श्रृंगार से ,
ये कुछ इस कदर अलग है ,
और तो श्रृंगार का हिस्सा हैं ,
ये जिंदगी का सबब है ।

गर नहीं होता मौजूद कभी ,
मायने इसके बदल जाते हैं ,
अपनी मर्जी से ना ओढ़ो तो ठीक ,
वरना लाज से ये जुड़ जाते है ।

तुम पर जचता हर श्रृंगार ,
जब भी खुद को सजाती हो ,
चांद से खूबसूरत चेहरे पर ,
दुपट्टा लगाती हो । 

आज भी जब कभी जिक्र ,
कहीं दुपट्टे का आता हैं ,
तेरा ही ख़्याल सबसे पहले ,
मेरे दिल को आता है ।

इश्क़ करने वाले होंगे बहुत ,
पर हमसा कहां कोई कर पायेगा ,
झुमके , बिंदी और काजल वाला ,
दुपट्टे की मोहब्बत कहां समझ पाएगा ।।

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